
एक झोंके सी आकर, रेत की परतें हटाकर,
मन की सिमटी चादर में अरमान जगाकर,
बीते पल में आशा के दीए जलाकर,
ये यादें बेवक्त ही आ जाती हैं,
भरी महफिल में तन्हा कर जाती हैं।
कुछ ख़बर कहाँ कब होती है,
जाने कौन पल याद बन जाएगा,
जाने कौन वहीं छोड़ जाएगा,
कब आँखें खुल जाएँगी,
और नया सवेरा निकल आएगा।
उन राहों पे यूँ ही चलते चलते,
उन गलियों में फ़िर गिरते उठते,
जाने क्यों एक बार फ़िर आ पहुँचे,
जहाँ कुछ और नहीं सिर्फ रात थी,
ये मालूम था की ये बस एक याद थी।
फिर भी क्यों ये मन कहता है,
उन पलों को जी ले फ़िर से,
कि वो यादें जाती नहीं दिल से,
और फ़िर भी हमें एहसास है,
ये बस कुछ पल हैं मुश्किल से।
आख़िर इन यादों ने ही बनाया है,
कल आज और कल
का सफर तय कराया है,
राह से मंज़िल, मंज़िल से राह
हर पल पाना सिखाया है।
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